दिनेश गुप्ता-
देवरिया
जिला कृषि रक्षा अधिकारी रतन शंकर ओझा ने बताया है कि वर्तमान में मौसम में हो रहे आकस्मिक बदलाव, नमी, बदली तथा तेज हवाओं के कारण दलहनी फसलों (चना मटर अरहर) तथा तिलहनी फसल-सरसों व साथ ही गेहू पर भी माहूं कीट तथा अन्य फलीभेदक कीटों का प्रकोप हो सकता । फसलों की सुबह-शाम निगरानी अत्यंत आवश्यक है। यह मौसम मांहूँ कीट की तेज वृद्धि में सहायक है। उन्होंने बताया है कि मांहूँ कीट हरे रंग के, 3 मि.मी. लम्बे, चुभाने व चूसने वाले मुखांग के साथ समूह में रहने वाले कीट हैं। इसके शिशु व प्रौढ पौधों के कोमल तनों, फूलों, नई पत्तियों आदि से रस चूसकर उन्हें कमजोर व क्षतिग्रस्त कर देते हैं तथा पत्तियों पर मधुस्राव कर देते है जिस पर काले कवक का प्रक्रोप हो जाता है एवं प्रकाश संश्लेषण की क्रिया बाधित होती है इस कीट का प्रकोप जनवरी से मार्च तक रहता है। यूरिया नाइट्रोजन की अधिक मात्रा एवं पोटाश की कमी होने पर मांहूँ का प्रकोप बढ़ने की सम्भावना होती है। मांहूँ का अधिक प्रकोप होने पर गेहूँ की बालियां व सरसों में दाने नहीं भर पाते। यदि खेत में कहीं इन कीटों का प्रकोप दिखाई दे तो किसानों को सतर्क हो जाना चाहिए, क्योंकि इसकी संख्या बहुत तेजी से बढती है। मांहूँ कीट अण्डा न देकर सीधे शिशु कीटों को जन्म देते है, जो तुरन्त सरसों की फलियों व डण्ठियों से रस चूसना शुरू कर देते है।
उन्होने बताया है कि इनके नियंत्रण के लिए डाइमेथोएट 30 ई.सी. की 1 लीटर मात्रा या मिथाईल ओ डिमेटान 25 ई.सी. की एक लीटर या क्लोरपायरीफास 20 ई.सी. की 1 लीटर या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत एस एल में से किसी एक रसायन को 500 लीटर पानी में घोलकर फ्लैटफैन नाजल स्प्रेयर से छिडकाव कर दें। सरसों में आरा मक्खी, बालदार सूड़ी आदि कीटों के प्रकोप होने पर मैलाथियान 5 प्रतिशत धूल की 25 किग्रा/प्रति हेक्टेअर में प्रयोग/बुरकाव करें। चना मटर अरहर फसलों में फलीछेदक कीट की सूडियों का प्रकोप हो सकता है। यह कीट फूलों में ही अण्डे दे सकता है या अविकसित फलियों/पाड्स में अण्डे देता है जिससे बाद में सूड़ियां निकल कर फली/पाड़ के अंदर ही अंदर दानों को खा जाती हैं, जिससे फलियों में दाने नहीं बन पाते व उत्पादन प्रभावित होता है । इनके लिए उक्त संस्तुत रसायनों का या मोनोक्रोटोफास 36 ई.सी. (750 मि.ली./हेक्टेअर) या फेनवेलरेट 20 ई.सी. की 750 मिली/हेक्टेअर लगभग 500 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। प्रकोप नियंत्रित होने तक प्रत्येक 10-15 दिन के अंतराल पर उक्त रसायनों का बदल-बदल कर 2-3 छिड़काव करना चाहिए। खेतों में नीम की खली का प्रयोग करें जो मृदा में जीवांश (आर्गेनिक मैटर) की मात्रा बढ़ाने के साथ जैव कीटनाशी के रूप में मिट्टी में उपस्थित कीटों, लारवा आदि को भी नष्ट कर देता है।
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