November 22, 2024

नागपंचमी व्रत एवं नागपूजन से महादेव होंगे प्रसन्न

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नागपंचमी व्रत एवं नागपूजन से महादेव होंगे प्रसन्न

 

मिलेगा सभी प्रकार के सर्प दोषों से छुटकारा-पंडित देवेंद्र प्रताप मिश्र

 

अमिट रेखा /मृत्युंजय पांडेय/ मेडिकल गोरखपुर

वैसे तो हर महीने की पंचमी तिथि नागों को अत्यंत प्रिय होती है, और उन्हें आनन्द देने वाली होती है, परन्तु श्रावण मास के शुक्ल पक्ष में नागपंचमी पर्व का विशेष महत्व होता है। इस वर्ष नागपंचमी सोमवार को पड़ने से विशेष फलदाई मानी गई हैं। इस दिन भगवान शिव एवं नागों की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन नागलोक में विशिष्ट उत्सव होता है। श्रावण मास के शुक्ल पक्ष युक्त सोमवार को जो भी व्यक्ति भगवान शिव को और उनके उपर स्थिति नाग देवता को दूध से स्नान कराकर विधिवत पूजा अर्चना करता है, एवं इस मंत्र का हृदय से जाप करता है ऊं नमोस्तु सर्पेभ्यो ये दिवि,येषाॅ॑ वर्ष मिषवः तेभ्यो दशप्प्राची र्दशादक्षिणा दशप्रतीची र्दशोदीची र्दशोर्दूध्वाः तेब्भ्योनमोअस्तुतेनो वन्तुतेनो मृड्यन्तुते यन्दृविष्मो यश्चनो द्वेष्टितमेषां जम्भेदध्मः उसके कुल में, वासुकी,तक्षक,कालिय, मणिभद्र, एरावत, धृतराष्ट्र,ककोर्टक तथा धनंजय ये सभी बड़े नाग,उस जातक एवं उसके समस्त परिवार को अभयदान देते हैं।उस जातक के कुल में सर्प का भय नहीं रहता है।एक बार नागमाता के शाप से सांप जलने लग गये थे, इसलिए उस दाह की व्यथा को दूर करने के लिए पंचमी को गाय के दूध से नागों को आज भी लोग स्नान कराते हैं, इससे सर्प भय नहीं रहता है, एवं समस्त प्रकार के सर्प दोषों से मुक्ति मिलती है। श्रीकृष्ण भगवान ने भी युधिष्ठिर से कहीं थी कि हे राजन आज से सौ वर्ष के बाद सर्पयज्ञ होगा, जिसमें बड़े बड़े विषधर एवं दुष्ट नाग नष्ट हो जायेंगे। करोड़ों नाग जब अग्नि में दग्ध होने लगेंगे,तब आस्तीक नामक ब्राह्मण सर्प यज्ञ रोककर नागों की रक्षा करेगा ब्रह्म जी ने पंचमी के दिन वर दिया था। और आस्तीक मुनि ने पंचमी को ही नागों की रक्षा की थी। इसलिए हर माह में पड़ने वाली पंचमी तिथि नागों को अत्यंत प्रिय होती है। अतः पंचमी के दिन नागों की पूजा करके यही प्रार्थना करनी चाहिए,कि जो नाग पृथ्वी में, आकाश में, स्वर्ग में, सूर्य की किरणों में, सरोवरों में,वापी,कूप, तालाब आदि में रहते हैं,वे सब हम पर प्रसन्न होकर अभयदान प्रदान करें।पूजन में गृह द्वार पर दोनों तरफ नाग का चित्र बनाकर, दूध एवं जल से र्तपण कर-कर दही,दुवऻऀकुर, धूप,दीप, पुष्प माला,धान का लावा,खीर, गुलगुले आदि से नागों का हृदय से पूजन करना चाहिए, ऐसा करने से जातक समस्त प्रकार के पितृदोष से मुक्त होता है। नागपंचमी का व्रत पुत्र प्राप्ति में भी विशेष महत्व रखता है। इस दिन पंचमुख नाग रजत या आंटे का बनाकर उसका भी पूजन करते हैं,, जिससे भगवान शिव प्रसन्न होकर जातक की सभी प्रकार की मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं।रक्षा नाग देवता ही करते हैं, साथ ही नाग पंचमी के दिन श्रीया, नाग और ब्रह्म अर्थात शिवलिंग की उपासना से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

नाग पंचमी का धार्मिक महत्व

हिंदू धर्म में नागों को विशेष स्थान प्राप्त है इसलिए इन्हे पूजनीय माना गया है। नाग देवता को भगवान शिव ने अपने गले में हार के रूप में धारण किया हैं, वहीं शेषनाग रूपी शैया पर भगवान विष्णु विराजमान रहते है। सावन माह के आराध्य देव भगवान शंकर को माना गया हैं।

ऐसी मान्यता है कि अमृत सहित नवरत्नों को प्राप्त करने के लिए जब देव-दानवों ने समुद्र मंथन किया था, तब संसार के कल्याण के लिए वासुकि नाग ने मथानी की रस्सी के रूप में कार्य किया था। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, ऐसा भी कहा जाता है कि इस दिन नाग जाति की उत्पत्ति हुई थी।भोलेनाथ के गले में भी नाग देवता वासुकि लिपटें रहते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, नाग पंचमी के दिन नाग देवता की आराधना करने से भक्तों को उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। नाग पंचमी से जुड़ीं मान्यताएँ पुराणों के अनुसार,सर्प के दो प्रकार बताए गए हैं: दिव्य और भौम। वासुकि और तक्षक को दिव्य सर्प माना गया हैं जिन्हे पृथ्वी का बोझ उठाने वाला तथा अग्नि के समान तेजस्वी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि ये अगर कुपित हो जाए तो अपनी फुफकार मात्र से सम्पूर्ण सृष्टि को हिला सकते हैं।

पुराणों के अनुसार, सृष्टि रचियता ब्रह्मा जी के पुत्र ऋषि कश्यप की चार पत्नियाँ थी। मान्यता है कि उनकी पहली पत्नी से देवता, दूसरी पत्नी से गरुड़ और चौथी पत्नी के गर्भ से दैत्य उत्पन्न हुए, लेकिन उनकी तीसरी पत्नी कद्रू का सम्बन्ध नाग वंश से था, इसलिए उनके गर्भ से नाग उत्पन्न हुए। सभी नागों में आठ नाग को श्रेष्ठ माना गया है और इन अष्ट नागों में से दो नाग ब्राह्मण, दो क्षत्रिय, दो वैश्य और दो शूद्र हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, अर्जुन के पौत्र और परीक्षित के पुत्र थे जन्मजेय। उन्होंने सर्पों से प्रतिशोध व नाग जाति का विनाश करने के लिए नाग यज्ञ सम्पन्न किया था क्योंकि उनके पिता राजा परीक्षित की मृत्यु तक्षक सर्प के काटने से हुई थी। इस यज्ञ को ऋषि जरत्कारु के पुत्र आस्तिक मुनि ने नाग वंश की रक्षा हेतु रोका था। इस यज्ञ को जिस तिथि पर रोका गया था उस दिन श्रावण मास की शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि थी। ऐसा करने से तक्षक नाग और समस्त नाग वंश विनाश से बच गया था। उसी दिन से ही इस तिथि को नाग पंचमी के रूप में मनाने की प्रथा प्रचलित

हुई।

166210cookie-checkनागपंचमी व्रत एवं नागपूजन से महादेव होंगे प्रसन्न