माता काल रात्रि का स्वरूप अत्यंत भयानक होता है- सरोज कुमार मिश्र
सातवे दिन के माता के स्वरूप का वर्णन
राजू प्रसाद श्रीवास्तव।
ब्यूरो, देवरिया।। चैत्र नवरात्रि में मां दुर्गा का सप्तम् स्वरूप मां कालरात्रि देवी का है। जो हमेशा शुभ फल देने के कारण शुभंकरी के नाम से जाना जाता है। चैत्र नवरात्रि का सातवां दिन बहुत महत्वपूर्ण होता है सभी भक्त इस दिन मां कालरात्रि की पूजा अर्चना करते हैं। माता दुर्गा की सप्तम शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हैं। दुर्गा पूजा के सातवें दिन मां कालरात्रि की उपासना का विधान है। इस दिन साधक का मन ‘सहस्रार’ चक्र में स्थित रहता है। इस दिन साधक के लिये ब्रह्मांड की समस्त अखण्ड सिद्धियों के द्वार खुलने लगते हैं।
दुर्गा भक्त श्री सरोज कुमार मिश्र ने कहा कि मां कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने के लिए जानी जाती है। इसी कारण इनका नाम कालरात्रि पड़ गया। देवी कालरात्रि तीन नेत्रों वाली मा जननी है। उनके समस्त अंग बिजली के समान विराल है। माता का स्वरूप काले रंग और विशाल बालों को फैलाए हुए चार भुजाओं वाली दुर्गा माँ है। सिंह के कंधे पर सवार माता कालरात्रि का विकराल रूप अद्रभुत होता है और इनकी मनमोहक सवारी गधा है जो देवी कालरात्रि को लेकर इस संसार से बुराई का सर्वनाश करता है। देवी कालरात्रि अपने हाथ में चक्र, गदा, तलवार,धनुष,पाश और तर्जनी मुद्रा धारण करती है माथे पर चन्द्रमा का मुकुट धारण करती हैं ।
आगे कहा कि दुर्गा के रूप वाली माता कालारात्रि को काली, महाकाली, भद्रकाली, भैरवी, मृतित्यू रुद्रानी, चामुंडा, चंडी और मां दुर्गा के कई विनाशकारी रूपों में से एक माना गया है। रौद्री और धुमोरना देवी कालारात्री के अन्य प्रसिद्ध नामों में से हैं। आगे बताया कि देवी माता दुर्गा के इस रूप से सभी राक्षस, भूत, प्रेत, पिशाच और नकारात्मक शक्तियों का नाश हो जाता है, जो माता के स्मरण करने मात्र से ही चले जाते हैं। एक प्राचीन तांत्रिक पाठ में देवी कालरात्रि का वर्णन रात्रि के नियंत्रा रूप में किया गया है। इस दिन सहस्रार्ध चक्र में स्थित साधक का मन पूर्णरूप से माता कालरात्रि के स्वरूप में विराजमान रहता है।वही दुर्गा सप्तशती में दिया गया है कि नवरात्रि के समय में सप्तमी तिथि के दिन माता कालरात्रि की साधना-आराधना करना चाहिए। इनकी साधना पूजा-अर्चना करने से माता के भक्त के सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है और शत्रुओं का नाश होता है, भक्त का तेज प्रताप बढ़ता है। सर्वसाधारण मानव जाती के लिए आराधना योग्य यह एक श्लोक मन्त्र सरल और स्पष्ट रूप से बताया गया है। माता दुर्गा की भक्ति पाने के लिए इस श्लोक मन्त्र को कंठस्थ कर नवरात्रि के सातवें दिन इसका जाप करना चाहिए।
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता !
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी !!
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभूषणा !
वर्धन्मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयन्करि !!
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