कुशीनगर सीएमओ की लापरवाही अस्त्रा चलाने वाले करते बड़े-2 आप्रेशन

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कुशीनगर सीएमओ की लापरवाही अस्त्रा चलाने वाले करते बड़े-2 आप्रेशन
amitrekha2006 April 3, 2021 1 min read


जनपद में प्राइवेट अस्पताल बन रहे कत्लगाह
कुछ ही डाक्टरों का नाम जनपद सभी हॉस्पिटलों में लगा हुवा है
मनोज कुंदन / राकेश वर्मा दुदही(कुशीनगर) कुशीनगर के स्वास्थ्य महकमे के कुछ जिम्मेदार अधिकारियों की आपराधिक उपेक्षा के चलते जिले के तमाम निजी अस्पताल और नर्सिंग होम कत्ल गाह बन गए हैं।और समय रहते कुकूरमुत्ते की तरह उग आए संसाधन विहीन ऐसे निजी अस्पतालों की बढ़ रही तादाद पर अंकुश नहीं लगाया गया तो वह दिन दूर नहीं जब सरकार के हाथ से यह HB मामला निकल जाएगा और गरीबों की जान अप्रशिक्षित और अनुभवहीन झोलाछाप डाक्टरों के हाथों बस मौत का इंतजार करेगी।प्रदेश और केंद्र की सरकारें चाहें जितनी कवायद स्वास्थ्य सेवाओं में स्तरीय सुधार करने की दिशा में कर लें,चाहें कितनी भी अच्छी नीतियां बना ली जाएं,कुशीनगर सीएमओ की लापरवाही से अस्त्रा चलाने वाले बड़े-2 आप्रेशन करने का दावा करते है।
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक मामला सेवरही कस्बे के बीचोंबीच पुलिस चौकी के ठीक पीछे संचालित हो रहे अस्पताल का है जहाँ अनुभवहीन व फर्जी तथाकथित डाक्टरों के हाथों के गर्भवती महिला को अपनी जान गवांनी पड़ी है । साप जाने के बाद.लकीर पीटने की कवायद में एफआईआर दर्ज कर कार्यवाही होने की बात की जाती है और फिर मामला मैनेज हो जाता है,फिर चिकित्सकिय हत्यारों का मनोबल बढ़ जाता है।पुरे जनपद की निजी स्वास्थ्य सेवाओं का एक बड़ा हिस्सा ऐसे ही कत्ल की कथाओं से भरा पड़ा है।एक ही डाक्टर के नाम का बोर्ड जिले के तमाम बड़े निजी अस्पतालों में देखा जा सकता है।ऐसा एक मामले में कसया के सामुदायिक अस्पताल मे संविदा पर कार्यरत एक सर्जन का नाम दुदही, सेवरही, गुरवलिया,तमकुही राज आदि स्थानों पर चल रहे निजी अस्पतालों के आकर्षक बोर्डो पर देखा जा सकता है।मौके पर बोर्ड पर दिखाए गए नामों मे से कोई भी नाम मौके पर मौजूद नहीं रहता ना ही अनुमन्य शैय्याओं की संख्या के सापेक्ष.आवश्यक चिकित्सकिय उपकरण और संसाधन ही तमाम निजी अस्पतालों में होते हैं।कोढ़ में खाज की स्थिति तब हो जाती है जब कोई जिम्मेदार नागरिक इन अस्पतालों में हो रहे अवैध गर्भपात, प्रसव और शल्य क्रिया के विरुद्ध आवाज उठाता है और जांच के नाम पर अधिकारियों को मोटी रकम ऐंठनें का मौका मिल जाता है और उसके बाद ऐसे अस्पताल और ताकत से ऐसे कामों को अंजाम देने लगते हैं।सरकारी अस्पतालों से प्रसव के मामले का एक बड़ा हिस्सा इन अस्पताल परिसर में दस बीस साल से डेरा जमाएं बैठे कर्मचारियों, आशा बहुओं, दाईयों के दलाली के काकश की मदद से कैसे अंतिम समय में निजी अस्पतालों में पहुंच जाता है।एक गहन जांच का विषय है।सरकारी अस्पतालों में मरीजों के साथ शोषण और असंवेदनशील व्यवहार भी कहीं न कहीं निजी अस्पतालों की ओर आम जनता के बढ़ते झुकाव का बड़ा कारण है।अनुचित और गैर जरूरी जांच,बाहरी दवाओं का बहुतायत लिखा जाना, मनमानी फीस वसूली, चिकित्सा कर्मियों के अपने मेडिकल स्टोर और जांच केंद्र भी शोषण के अन्य रास्ते बनाते हैं।साथ साथ एक ही जगह लंबे समय से कार्यरत होने के कारण भी यह चौकड़ी और मजबूत होती नजर आती है।ऐसे में हर मौत के बाद कागजी कार्यवाही के नकली घोड़े दौड़ा कर कब तक सरकार को बदनाम करने का काम जनपद के आला अधिकारी करेंगे?.. कब सरकार इस मामले में कोई ठोस कार्यवाही करेगी?.कब तक किसी ठोस कार्यवाही की अपेक्षा में निजी अस्पताल मासूम लोगों के कत्ल का कारण बनेंगे?यह सवाल हर मौत के बाद हुई जांच रिपोर्ट के बाद कुशीनगर की जनता के मन में उठता है और जवाब मिलता है.. खामोश…।

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