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जिस बहू ने बृद्धाश्रम छोड़ा उसकी बीमारी की जानकारी पाकर व्याकुल हो गई सास

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अमिट रेखा सत्य प्रकाश यादव
ब्यूरो गोरखपुर
रामगढ़ताल इलाके के बड़गों स्थित गोकुलधाम वृद्धाश्रम में वर्तमान समय में 38 पुरुष व 19 महिलाओं समेत कुल 57 बुजुर्ग रहते हैं। आश्रम के मैनेजर राम सिंह निषाद समेत अन्य कर्मचारी इनका ख्याल तो रखते ही हैं, उनकी जरूरत के सामान भी मुहैया कराते हैं, पर इनके अपने, जिन्होंने इन्हें अकेला छोड़ दिया वे कभी इनका हालचाल तक लेने नहीं आते। अपनों ने जिन्हें वृद्धाश्रम में अकेला छोड़ दिया, इन बुजुर्गों के लिए कभी बेगाने रहे लोग ही अब अपने हो गए। सबकी एक ही तकलीफ है, अपनों से मिली उपेक्षा। इसी दर्द ने एक दूसरे को मजबूती से बांध दिया। इसकी बानगी नववर्ष के मौके पर भी देखने को मिली। सबने मिलजुल कर नया साल मनाया। इन बुजुर्गो का कहना है कि यही अब उनका परिवार है, अपनों से ज्यादा हम एक-दूसरे का ख्याल रखते हैं। हां, कुछ समाजसेवी जरूर समय-समय पर त्योहार आदि में आते हैं और इनके साथ अपनी खुशियां बांटते हैं। शुक्रवार को नए साल के दिन भी कई सामाजिक लोग आए और मिठाई आदि देकर खुशियां साझा कीं। जिससे इन्हें भी अपनेपन का एहसास हुआ। आश्रम में रहने वाली नकहा निवासी एक बुजुर्ग महिला को पति की मौत के बाद डेढ़ साल पहले उनकी बहू व बेटे ने आश्रम में छोड़ दिया। कारण, मां बीमार हो गईं थीं। बहू-बेटे ने ताना देना शुरू कर दिया था। जिस पर मां ने खुद ही उन्हें आश्रम छोड़ने के लिए कह दिया था। मैनेजर राम सिंह के अनुसार आश्रम में रहने के दौरान जब महिला को अपनी बहू के बीमार होने व ऑपरेशन की बात पता चली तो इतना सब कुछ होने के बाद भी कलेजा पसीज गया। वह व्याकुल हो गईं और इलाज के लिए अपने गहने तक बेचकर जो भी रकम हो सकी वह भेज दी। पर बहू व बेटा आज तक उससे मिलने नहीं आए। अब वह महिला कहतीं हैं कि आश्रम के लोग व वहां हाल चाल लेने आने वाले ही उनका परिवार हैं।
ठाकुरी देवी (65) ने कहा कि पति देख भाल नहीं करते थे। जिससे ऊब कर दो साल पहले आश्रम आ गई। तबसे वह एक बार भी देखने नहीं आए। अब यही आश्रम ही मेरा परिवार है। कभी अपनों की कमी महसूस नहीं होती। रानी वर्मा (58) ने कहा कि एक साल पहले पति ने ही बेरुखी दिखाई और घर से निकाल दिया। बेटे ने भी साथ नहीं दिया। लिहाजा आश्रम चली आई। तबसे कभी भी परिवार के लोग देखने नहीं आए कि जिंदा हूं या मर गई। आश्रम से बहुत प्यार मिलता है। हम एक-दूसरे का सहारा हैं। पवारू (70) ने कहा कि पत्नी की मौत के बाद अकेला हो गया। बेटे का भी देहांत हो गया। पौत्र था, लेकिन वह एक दिन वह मुंबई चला गया। उसके मुंबई जाने के बाद उसकी पत्नी देखभाल ही नहीं करती थी। कुछ दिन बाद उसने मुझे आश्रम छोड़ दिया। तबसे एक साल हो गया, कभी झांकने नहीं आए। रामदुलारे (75) ने कहा कि पत्नी की मौत के बाद अकेला हो गया था। बेटा व बहू ही सहारा थे, पर बेटा ही पराया निकला और मुझे आश्रम लाकर छोड़ दिया। कभी हाल चाल लेने तक नहीं आए। अब यहां के लोग ही अपने हैं।

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