*अपनों की बगावत से गाढ़ी हो रही राजनीतिक दलों के माथे की रूढ़ियां, चेहरों की है खास अहमियत*
रिपोर्ट
शिव शंभू सिंह
तमकुही, कुशीनगर। राजनीतिक दलों के लिए अपनों का बयान ही अब सबसे बड़ा सिरदर्द बन गया है। बहाना के परेशान होने की वजह पुराना अनुभव है। जिनमें बागी जब-जब लड़े तो उनमें से ज्यादातर जीतकर आए। अब जबकि पहले दौर के नामांकन सोमवार को खत्म हो गए हैं तो बागी एक बार फिर ताल ठोक चुके हैं। वहीं, राजनीतिक दल अब मनुहार की स्थिति में हैं कि बागी अपना नाम वापस ले लें।
सूचनाओं की देनदारी तो निकाय चुनाव में, विशेष रूप से सभासद, खाते की स्थिति पर अहमियत सिंबल से अधिक होती है। प्रत्याशियों के व्यक्तिगत संपर्क और तल्लुक्त ही उन्हें मिलने वाले वोटों की दिशा तय करते हैं। यही वजह है कि, जिस बागी का संपर्क ठीक हो रहा है अगर उसका टिकट कट भी जाए तो उसके लिए चुना जाना ज्यादा मुश्किल नहीं होता है। यही कारण है कि राजनीतिक दलों के माथे की रूढ़ियां गाढ़ी हो रही हैं क्योंकि जो कल तक भाजपा, सपा, बसपा व अन्य पार्टियों से टिकट के उड़ानें थीं, अब टिकट न मिलने से निर्दलीय या अन्य दलों से चुनाव में ताल ठोक रहे हैं।
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